जानें घोर और अघोर साधना क्या है | डॉ0 विजय शंकर मिश्र

तांत्रिक , कापालिक , अघोरी ये शब्द सुनते ही एक भयावह व्यक्ति ओर दृश्य की लोग कल्पना करते है । क्योंकि कुछ अज्ञानी लोगोने प्रचंड शक्ति प्राप्ति की इस दिव्य उपासना का स्वरूप समजे बिना अपने अज्ञान का प्रदर्शन करते हुवे तंत्र अघोर मार्ग का ऐसा चित्रण किया । जब कि तंत्र और अघोर उपासना करनेवाला साधक तो पवीत्र ओर सौम्य होता है । ये वैदिक या पुराणोक्त उपासना से अलग है और प्रचंड ऊर्जा प्राप्ति की अलौकिक उपासना है इसलिए आम इंसान को ये समझ नही आता । पर इंटरनेट , फेसबुक , न्यूज पेपर में अपनी खुदकी प्रशस्ति ओर व्यापार करनेवाले अज्ञानी जो दिखावा करते है और जो डर का माहौल बनाते है ये सच नही है । हाड़ पिंजर , खोपड़ी , बिगैरा बिगैरा ये सब दिखाकर आम जनता पर वो शक्तिशाली है ऐसा दिखावा करते है । छोटे मोटे तंत्र के प्रयोग जानकर या तंत्र के मंत्र और विधान पढ़कर कोई तांत्रिक सिद्ध नही बनता । ये तो गुरु परम्परा में दीक्षित होकर सद्गुरु के सनिध्यमे की जानेवाली दिव्य उपासना है । कोई तांत्रिक या अघोरी साधक कभी प्रजा के बीच आकर इनका तमाशा नही करता ।

अघोर – उपासना :-


उज्जैन तंत्रविद्या ओर अघोर उपासना का केंद्र है.उज्जैन का स्मशान जहा महादेव का भूतनाथ स्वरूप की स्थापना है अपनी उच्च उपासना से भैरव स्वरूप बने वीर विक्रम का विक्रांत भैरव स्वरूप की स्थापना है .गढ़काली ओर चक्रतीर्थ उपासना के मुख्य केंद्र है .तंत्र और अघोर उपासना के उच्च उपासक साधु भगवंतों का अखाड़ा है .लोग अघोरी का नाम सुनते ही एक चित्र की कल्पना करते है जो गंदकी में पड़ा हो गंदा स्वरूप हो पर ऐसा बिल्कुल नही है. घोरी ओर अघोरी में कुछ भेद है जो घोर नही है वो अघोरी है..कल्पनातीत गंदा दिखनेवाले ओर दूसरोंको नुकशान करने वाला और स्वजात को बर्बाद करे वो घोरी है

अघोर और घोर में अंतर :-


अघोर में अधिकांश पूजा राजसिक व सात्विक की जाती है।जिसमे साधक स्वयं पूर्ण सात्विक ही रहता है। उसकी श्रद्धा और साध्य दोनो सात्विक परम कल्याण के ही होते है। जिसे जो चाहिए उसे वो दिया जाता है। लेकिन वह स्वयं सात्विक आचरण व्यबहार आहार करता है। और उसका साधना का लक्ष्य भी उच्च होता है। वह परम अघोरी है। अघोरी सर्वप्रथम परम शक्ति को आराधकर अन्य शक्तियो को अपने आधीन व नियंत्रण में रखते है और कार्यानुसार उनका प्रयोग करते है जिसे जो आवश्यक हुआ उसे उस भोग को देते है।

घोरी के कर्म भी अघोरी के ही बराबर है लेकिन अंतर इतना है घोरी स्वयम भी तामसिक हो जाता है। वह घोर शक्तियों के नियंत्रण में आकर स्वयम भी मद्य माँस का भोगी बन बैठता है।शेर का भोग माँस है वह घास नही खायेगा। लेकिन मनुष्य का आहार शाकाहार है। लेकिन जो साधक स्वयम भी घोर आचरण में लिप्त हो जाते है वह अघोरी नही है वह घोरी है। क्योंकि उस घोरी ने इसी जन्म में नरक प्राप्त कर लिया है। और एक दिन वह गन्दगी खाना भी सुरु कर देता है।

अघोर उपासना मतलब सर्व जीव सृष्टिको समान भावसे देखनेवाले शिव की उपासना.गृहस्थी संसारी भी अघोर उपासना के कुछ विधान कर सकते है और शिवकृपा प्राप्त कर सकते है..

एक निर्दोष प्रयोग :-


घरके एक एकांत रूममे मिट्टी ,गाय के गोबर , आम के लकड़े की भस्म मिलाकर पार्थिव शिवलिंग की स्थापना करें. सोमवार की रात्रि संध्या के बाद से 21 दिन पूजा की शुरुआत करे.प्रथम सद्गुरु का पूजन करे ,एक बाजठ पर आसन( आपको उत्तर दिशा की तरफ मुख रखकर बैठना है , गुरुआसन आपके दाएं हाथ की तरफ रखे ) पर गुरुदेव के नाम एक दीप गाय के घी का प्रज्वलित करे.शिवलिंग की पश्चिम दिशा याने आपके बायें हाथ की तरफ एक बाजठ पर आसन रखकर गणपति पूजा स्थापन करे.वहां भी गाय के घी से दिप जलाये .अब शिवपूजा करें. पंचामृत ओर गंगाजल से स्नान ,चंदन या भस्म का तिलक ओर बील्व पत्र ,सफेद पुष्प धरे ओर चमेली के तेलका दिप जलाये ओर गूगल का धुप करे और प्रसादमें फल और दुग्ध से बना नैवेद्य धराये.आरती करने के बाद शिव का इस मंत्र का जाप ब्रह्म मुहूर्त तक करे । रात्रि के 8 बजे पूजा प्रारम्भ करे और पूजन के बाद प्रातः काल 4 बजे तक इस मंत्र का जाप करे ।

” ॐ अघोरेभ्यो अथघोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्यः
सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्र रूपभ्यः ”

ब्रह्म मुहूर्त के बाद आप आराम कर सकते है.21 दिन तक यही क्रम से पूजा और जाप करना है.पूजा और जाप के समय तीनो दिप अखण्ड शुरू रहे वो देखना.21 दिन ब्रह्मचर्य का पालन और सम्भव हो तो मौनव्रत पालन करे.दिनचर्या में भी जब फ्री होजाय मनमे इस मंत्र का जाप करते रहे.

अनुष्ठान शुरू करे तब हाथमे जल लेकर संकल्प करें ” है शिवपिता में ………..(गोत्र सहित अपना नाम )आपकी प्रसन्नता केलिए ये मंत्रानुष्ठान कर रहा हूँ ,आप इनका स्वीकार करे ..संकल्प बोलकर हाथमे लिया जल शिबलिंग के पास छोड़ दीजिए.21 वी रात्रि पूजन जाप के बाद सुबह अर्पण करें हाथमे जल लेकर ” है शिवपिता मेने आपकी प्रसन्नता केलिए जो ये मंत्रानुष्ठान किया उनका फल आपके शरणों में अर्पण कर रहा हूँ ..ये बोलकर हाथमे लिया जल शिवलिंग के पास छोड़कर उस जलसे अपने भाल पर तिलक करें , फिर स्थापित देवता गुरु ,गणपति ओर महादेव को उनके दिव्यलोक पधारे ऐसी प्रार्थना करे ,ओर बादमे सारा पूजा सामान सहित शिबलिंग को नदी या तलाव में विसर्जित करे

1 इस विधान करनेवाला हरकोई व्यक्ति अचूक सिद्धि प्राप्त करता है

2 इस पूजा विधान से शिवजी के साक्षात्कार के भी अनेक प्रसंग हुवे है

3 इस अनुष्ठान दरम्यान अनेक प्रकार के नाद गान सुनाई दे ,पर आप मंत्र जाप में स्थिर रहे

4 प्रत्यक्ष या परोक्ष ( सपनेमे ) रूपमे अनेक शक्तियां प्रकट हो पर आप सिर्फ शिवकृपा ही चाहते है ऐसे कहे

इस एक अनुष्ठानसे आपका पूरा जीवन बदल जायेगा.हर जीव में शिवका भाव होगा.ये सरल और निर्दोष पूजा अनुष्ठान हरकोई कर सकता है

अघोर की क्रिया सबके लिए है अघोर की साधना सबके लिए है अघोर सबके लिए है परंतु अघोर के अंश जिनमे पारलौकिक शक्तियां जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आपको प्रभावित करती है चाहे वो अछि हो या बुरी उनका आवाहन उनका विचलन उनको साधना उनको तृप्त करना उनको संतुलित करने सबके बसकी नही है। जिस प्रकार 10 या 20 या 50 या 100 किलो तक का वजन तो साधारण मनुष्य उठाने की क्षमता रखता है मगर अधिक वजन होने पर 2 या अधिक मनुष्य ही उस वजन को उठा सकते है क्योंकि किसी अकेले मनुष्य के बसकी नही इतना अधिक वजन उठाने की क्षमता।

ठीक इसी प्रकार अघोर की कुल 108 साधनाओ में से जिनमे से 17 गृहस्थ ओर सन्यास दोनों तरीके से ओर बाकी 91 केवल सन्यास मार्ग में की जाती है।सुरु की 17 में से भी केवल 6 तो साधक साधिका अलग अलग रह कर भी कर सकते है क्योंकि इनमें उर्जाए की मात्रा नियंत्रित ओर कम होती है लेकिन इसके ऊपर की समस्त साधनाओ में हमेशा साधना पथ में विपरीत लिंग के सदस्य की जरूरत होती है क्योंकि यह साधनामे कितनी उर्जाए प्रफुसित होगी ये कोई भी नही जानता ओर ये उर्जाए कोई अकेला साधक या साधक नही संभाल सकता।(पति और पत्नी दोनों कर सकते है )इस अतरिक्त उर्जाए को संचित किया जा सकता है।लेकिन अगर ये उर्जाए किस अकेले साधक साधिका ने संवहित करने की कोसिस की तो संभावना है कि वो मानसिक रूप से या शारीरिक रूप से विक्षिप्त हो जाये।क्योकि अघोर की प्रारंभिक साधनाओ से साधक या साधिका में इतनी क्षमता नही बन पाती की वो इतनी उच्च उर्जाए को ग्रहन कर सके।दूसरी बात इस ऊर्जा को आपस मे मिलान स्वरूप संचित तो कर सकते है लेकिन अगर वो मिलान केवल आपकी वासना में सीमित हो गया या खंडित हुआ तो इसके क्या दुष्परिणाम होंगे आप सोच भी नाहज सकते।ये बिकुल वैसे ही है जैसे किसी बम्ब को एक जगह से दूसरी जगह सही पहुंचना अगर कुछ भी गलत हुआ तो रास्ते मे फैट कर खुद को ही नुकसान हो जाएगा।मिलान का प्रतिरूप भी अघोर में साधना के अनुसार 21 प्रकार है स्त्री उर्जाए और पुरुष उर्जाए खुद को आपस मे मंत्रोच्चार ओर कुप्पिक से ही संयोजित होते है और इसकी विपरीत क्रिया उपपिक से ही साधना में अलग होते है।

डॉ0 विजय शंकर मिश्र

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