भगवान किसी का उधार नहीं रखते | संत श्री मणिराम दास जी महराज श्री धाम अयोध्या |

एक बार की बात है। वृन्दावन में एक संत रहा करते थे। उनका नाम था कल्याण । बाँके बिहारी जी के परमभक्त थे एक बार उनके पास एक सेठ आया। अब था तो सेठ लेकिन कुछ समय से उसका व्यापार ठीक नहीं चल रहा था। उसको व्यापार में बहुत नुकसान हो रहा था। अब वो सेठ उन संत के पास गया और उनको अपनी सारी व्यथा बताई और कहा महाराज आप कोई उपाय करिये।
उन संत ने कहा देखो अगर मैं कोई उपाय जनता तो तुम्हें अवश्य बता देता । मैं तो ऐसी कोई विद्या जानता नहीं जिससे मैं तेरे व्यपार को ठीक कर सकूँ। ये मेरे बस में नही है । हमारे तो एक ही आश्रय है बिहारी जी। इतनी बात हो ही पाई थी कि बिहारी जी के मंदिर खुलने का समय हो गया।

अब उस संत ने कहा तू चल मेरे साथ ऐसा कहकर वो संत उसे बिहारी जी के मंदिर में ले आये और अपने हाथ को बिहारी जी की ओर करते हुए उस सेठ को बोले तुझे जो कुछ मांगना है। जो कुछ कहना है इनसे कह दे ये सबकी कामनाओं को पूर्ण कर देते हैं। अब वो सेठ बिहारी जी से प्रार्थना करने लगा दो चार दिन वृन्दावन में रुका फिर चला गया। कुछ समय बाद उसका सारा व्यापार धीरे धीरे ठीक हो गया फिर वो समय समय पर वृन्दावन आने लगा। बिहारी जी का धन्यवाद करता और अपने व्यापार में व्यस्त होजाता । फिर कुछ समय बाद वो थोड़ा अस्वस्थ हो गया वृन्दावन आने की शक्ति भी शरीर में नहीं रही।

लेकिन उसका एक जानकार एक बार वृन्दावन की यात्रा पर जा रहा था तो उसको बड़ी प्रसन्नता हुई कि ये बिहारी जी का दर्शन करने जा रहा है, तो उसने उसे 750 रुपये दिये और कहा कि ये धन तू बिहारी जी की सेवा में लगा देना और उनको पोशाक धारण करवा देना। अब बात तो बहुत पुरानी है ये, अब वो भक्त जब वृन्दावन आया तो उसने बिहारी जी के लिए पोशाक बनवाई और उनको भोग भी लगवाया लेकिन इन सब व्यवस्था में धन थोड़ा ज्यादा खर्च हो गया लेकिन उस भक्त ने सोचा कि चलो कोई बात नहीं थोड़ी सेवा बिहारी जी की हमसे बन गई कोई बात नहीं।

लेकिन हमारे बिहारी जी तो बड़े नटखट है ही अब इधर मंदिर बंद हुआ तो हमारे बिहारी जी रात को उस सेठ के स्वप्न में पहुँच गए अब सेठ स्वप्न में बिहारी जी की उस त्रिभुवन मोहिनी मुस्कान का दर्शन कर रहा है। उस सेठ को स्वप्न में ही बिहारी जी ने कहा तुमने जो मेरे लिए सेवा भेजी थी वो मैंने स्वीकार की लेकिन उस सेवा में 249 रुपये ज्यादा लगे हैं । तुम उस भक्त को ये रुपये लौटा देना ऐसा कहकर बिहारी जी अंतर्ध्यान हो गए । अब उस सेठ की जब आँख खुली तो वो आश्चर्य चकित रह गया कि ये कैसी लीला है बिहारी जी की?

अब वो सेठ जल्द से जल्द उस भक्त के घर पहुच गया तो उसको पता चला कि वो तो शाम को आएंगे। जब शाम को वो भक्त घर आया तो सेठ ने उसको सारी बात बताई तो वो भक्त आश्चर्य चकित रह गया कि ये बात तो मैं ही जानता था और तो मैने किसी को बताई भी नही। सेठ ने उनको वो 249 रुपये दिए और कहा मेरे सपने में श्री बिहारी जी आए थे वो ही मुझे ये सब बात बता कर गए हैं ।

ये लीला देखकर वो भक्त खुशी से मुस्कुराने लगा और बोला जय हो बिहारी जी की इस कलयुग में भी बिहारी जी की ऐसी लीला। तो भक्तों ऐसे हैं हमारे बिहारी जी । ये किसी का कर्ज किसी के ऊपर नहीं रहने देते। जो एक बार इनकी शरण ले लेता है फिर उसे किसी से कुछ माँगना नहीं पड़ता उसको सब कुछ मिलता चला जाता है।

बोलो श्री वृन्दावन बिहारी लाल की जय।

।।जय जय श्री राम कृष्ण हरि ।।
।।जय जय श्री राधे राधे ।।
प्रेमावतार पञ्चरसाचार्य श्रीमद् स्वामी श्री राम हर्षण देवाचार्य जी महाराज श्री के लाडले कृपा पात्र-
भागवत मधुकर- बाल संत श्री मणिराम दास जी महराज- श्री राम हर्षण कुंज श्री धाम अयोध्या जी
6394614812

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