श्री गणेश जी को दूर्वा अत्यंत प्रिय क्यों है | डॉ0 विजय शंकर मिश्र

दूर्वा एक प्रकार की ग्रास होती है, जिसको भगवान गणेश जी पर अर्पित किया जाता हैं। ऐसी मान्यता है, कि गणेश जो को दूर्वा अर्पित करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है एवं घर में रिद्धि-सिद्ध का वास होता है। गणेश जी को दूर्वा अर्पित करने से सम्बंधित एक कथा अत्यंत प्रचलित है…
प्राचीन काल में अनलासुर नामक एक दैत्य था। अनलासुर के कोप से समस्त स्वर्ग तथा धरती पर त्राहि त्राहि विद्यमान थी। अनलासुर ऋषि-मुनियों एवं निरीह मानवों को जीवित ही निगल जाता था। दैत्य से त्रस्त होकर देवराज इंद्र सहित समस्त देवी-देवता तथा प्रमुख ऋषि मुनि महादेव से सहायता मांगने गये एवं प्रार्थना की कि, “समस्त लोक परलोक को अनलासुर के आतंक से मुक्त कराएं…”
शिवजी ने उनकी विनती सुन कर कहा कि, “अनलासुर का अंत मात्र श्री गणेश जी ही कर सकते हैं…”
शिवजी ने कहा कि, “अनलासुर का अंत करने हेतु उसे निगलना होगा एवं ये कार्य मात्र गणेश जी ही संपन्न कर सकते हैं। गणेश जी का उदर अत्यंत विशाल है, अतः अनलासुर को निगलने में कठिनाई नहीं होगी…”
शिव जी की वार्ता सुन समस्त देवी देवता भगवान गणेश जी के समीप गए एवं उनकी स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया।
गणेश जी अनलासुर को समाप्त करने के लिए उद्धत हुए। श्री गणेश जी तथा अनलासुर के मध्य भीषण युद्ध हुआ। अंततः गणेश जी ने असुर को निगल लिया। इस प्रकार अनलासुर के आतंक का अंत हुआ, परन्तु अनलासुर को निगलने के पश्चात गणेश जी के उदर में अत्यंत तीव्र अग्नि पड़ने लगी। समस्त प्रयासों के उपरांत भी गणेश जी की उदराग्नि शांत नहीं हुई। तत्पश्चात कश्यप ऋषि ने दूर्वा की २१ गांठ निर्मित कर श्री गणेश जी को ग्रहण करने हेतु दीं। ऋषि कश्यप द्वारा प्रदान दूर्वा से गणेश जी की उदराग्नि शांत हुई एवं इस प्रकार श्री गणेश जी को दूर्वा अर्पित की परंपरा प्रारंभ हुई…

  • डॉ0 विजय शंकर मिश्र
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