राजस्थान के राजनीतिक रण में विक्टिम से विलेन कैसे बने सचिन पायलट? पढ़े पूरी खबर।

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस की जीत के हीरो बने सचिन पायलट ने अब सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया है। पायलट के बीजेपी में जाने की अटकलों के बीच कांग्रेस ने अपने तेवर सख्त कर लिए हैं। कांग्रेस ने सोमवार को विधायक दल की होने वाली बैठक के लिए व्हिप जारी कर रखा है। ऐसे में सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक बैठक में नहीं शामिल होते हैं तो उनकी सदस्यता खत्म हो सकती है।

राजस्थान का सियासी संकट गहरा गया है, जो स्थितियां पिछले दो दिनों में बनी हुई हैं, उससे साफ है कि अब सुलह की गुंजाइश नहीं है, बल्कि लड़ाई आरपार की है, सचिन पायलट आगे बढ़ चुके हैं और साफ दिख रहा है कि वे ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर हैं। राजस्थान के सियासी रण में जारी शह-मात के खेल में पायलट पर गहलोत भारी पड़ते नजर आ रहे हैं।

हालांकि, डेढ़ साल पहले कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने गहलोत को सीएम बनाने का फैसला किया था तो पायलट को पार्टी में एक विक्टिम के तौर पर देखा जा रहा था, लेकिन पार्टी में बगावत की राह अख्तियार कर अब वो विलेन बनते नजर जा रहे हैं।

कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व गहलोत के साथ


सचिन पायलट विधायकों की खरीद-फरोख्त की जांच कर रही एसओजी के नोटिस के बाद से ही नाराज हैं। उन्हें कांग्रेस और कुछ निर्दलीय विधायकों का समर्थन है। इस सियासी उठापटक के बीच कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अशोक गहलोत के साथ खड़ा नजर आ रहा है। वहीं, तीन दिन से दिल्ली में जमे होने के बाद भी सचिन पायलट का शीर्ष नेताओं से मुलाकात नहीं हो पाना क्या यह संकेत नहीं है कि उनके लिए मौके खत्म हो चुके हैं? इससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस आलाकमान पायलट से ज्यादा गहलोत को तवज्जो दे रहा है। कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व द्वारा जयपुर भेजे गए नेता गहलोत सरकार को बचाने में जुट गए हैं।

सरकार को अस्थिर करने का इल्जाम


राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा ने बताया कि इस राजनीतिक शह-मात के खेल में सचिन पायलट को ही राजनीतिक नुकसान होता नजर आ रहा है। कांग्रेस में नंबर दो की हैसियत के नेता हैं, लेकिन बीजेपी में जाते हैं तो यह पोजिशन हासिल नहीं कर पाएंगे। 2018 में कांग्रेस को जीत दिलाकर वो हीरो बने थे, लेकिन बगावती रुख अख्तियार कर सचिन पायलट सिर्फ और सिर्फ अपना नुकसान ही करते जा रहे हैं।

वह कहते हैं कि राज्य में एक अच्छी खासी चलती सरकार को अस्थिर करने का आरोप भी सचिन पायलट पर लग रहा है। इसके अलावा कांग्रेस के ज्यादातर विधायक अभी भी गहलोत के साथ हैं, इसीलिए कांग्रेस नेतृत्व ने पायलट से ज्यादा गहलोत को अहमियत दी है। वहीं, बीजेपी ने भी पायलट को सीएम बनाने से इनकार कर दिया है।

पायलट समर्थक MLA भी गहलोत के साथ
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट की ओर से दावा दिया गया है कि गहलोत सरकार अल्पमत में है और 30 विधायक उनके साथ हैं, लेकिन कौन-कौन साथ हैं यह बात सामने नहीं आ पाई है. दूसरी ओर कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडे ने कहा है कि 109 विधायकों का समर्थन पत्र मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास पहुंच गया है। इस उठापटक के बीच सचिन पायलट के समर्थक माने जाने वाले कांग्रेस विधायक दानिश अबरार, चेतन डूडी और रोहित बोहरा ने रविवार देर शाम कहा कि हम कांग्रेस के सिपाही हैं और आखिरी सांस तक कांग्रेस के साथ ही रहेंगे।

नंबर गेम जुटना आसान नहीं


राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा ने बताया कि राजस्थान में संख्या बल के लिहाज से सचिन पायलट के लिए यहां अशोक गहलोत का सत्ता परिवर्तन कराना काफी मुश्किल नजर आ रहा है। प्रदेश में कांग्रेस काफी हद तक मजबूत स्थिति में है। विधानसभा में कुल 200 विधायक हैं, वर्तमान दलीय स्थिति में कांग्रेस के पास 107 विधायक हैं। इसके अलावा 13 निर्दलीय विधायकों का भी गहलोत सरकार को समर्थन हासिल है। वहीं, बीजेपी के पास 72 विधायक हैं और तीन अन्य विधायकों का समर्थन हासिल है।

कांग्रेस के पास खुद ही सामान्य बहुमत से ज्यादा विधायकों का फिलहाल समर्थन है। बीजेपी और कांग्रेस खेमे की तुलना करें तो उनमें 45 विधायकों का अंतर है। 45 विधायकों का फासला पाटना काफी मुश्किल नजर आ रहा है। ऐसे में सचिन पायलट खेमे की ओर से भले ही 30 विधायकों के समर्थन का दावा किया जा रहा हो, लेकिन इतनी संख्या में विधायक उनके साथ खड़े नजर नहीं आ रहे हैं। इसीलिए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व पायलट से ज्यादा गहलोत को तवज्जो दे रहा है।

कांग्रेस को तोड़ पाएंगे पायलट?


वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि सचिन पायलट अभी तक कांग्रेस को तोड़ने से ज्यादा बार्गेनिंग करते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस को तोड़ने के लिए एक तिहाई विधायकों की समर्थन की जरूरत है, जो फिलहाल उनके साथ नहीं दिख रही है। शर्मा कहते हैं कि सचिन पायलट कांग्रेस के कितने विधायकों को अपने साथ जोड़ पाते हैं यह देखना होगा। पार्टी के एक तिहाई विधायकों को नहीं जोड़ पाते हैं तो राजस्थान में गहलोत सरकार को बेदखल नहीं कर पाएंगे। इतना ही नहीं कांग्रेस से बगावत कर अपनी छवि को भी सचिन पायलट ने नुकसान पहुंचाया है।

प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी की लड़ाई
सचिन पायलट करीब साढ़े छह साल से राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनके समर्थक चाहते हैं कि यह पद पायलट के पास ही बना रहे जबकि मांग चल रही है कि प्रदेश अध्यक्ष बदला जाए. गहलोत खेमे की ओर से प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए ब्राह्मण कोटे से रघु शर्मा, महेश जोशी और जाटों से लालचंद कटारिया, ज्योति मिर्धा का नाम आगे किया जा रहा है। इसके अलावा रघुवीर मीणा का भी नाम प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए लिया जा रहा है. इसपर आखिरी फैसला कांग्रेस आलाकमान को लेना है। वहीं, सचिन पायलट राज्य में पार्टी की कमान अपने पास ही रखना चाहते हैं। हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व ने डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष में से किसी एक पद को चुनने का विकल्प सचिन पायलट को दिया है।

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