पाँव थकत, मां चलत-चलत, तू कितना गोद उठाएगी | कवयित्री – सुविधा अग्रवाल “सुवि”

पाँव थकत, मां चलत-चलत
तू कितना गोद उठाएगी,

बोझे से कंधा दबत-दबत,
मुझको भी पीठ चढ़़ाएगी

बीतै दिन रस्ता नपत-नपत,
मंजिल जाने कब आएगी

दूजे भरोसे रोटी तकत-तकत,
भूखै जान निकल ये जाएगी

निर्दय निर्मम करैं चकर-चकर,
मिथ्य ढ़ांढ़स बस ये बंधाएगी

छाले से पांव छिलत-छिलत,
अंततः गांव पाट तू जाएगी

पहुंचे जब गृृह हफत-हफत,
चैन से भोज मां तू बनाएगी

प्राण निकल गए भटक-भटक,
अब शहर कभी तू न जाएगी

 

कवयित्री – सुविधा अग्रवाल “सुवि”

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