“प्रकृति माँ” – कवि अभिषेक नेमा | पढ़ें पर्यावरण दिवस पर यह मनमोहक कविता

भोर हुई है, भानू आया।
काली चादर रात उठाया।
अल्हड़ पौधे मस्ती गाते।
उड़ते पंछी कोयल आते। १

मोती ओस के गिरते प्यारे।
सुंदर सृष्टि ईश निहारे।
इंद्रधनुष पोशाक बनाये।
बादल बिजली शोर मचाये। २

जल सुधा, वायु जीवन देती।
पालें मिट्टी कुछ नही लेती।
कीमत कुदरत मानुष जानों।
सब मिल प्रकृति को माता मानों।।३

देती श्वासें, अन्न जल पाले।
माँ प्रकृति नेह दृष्टि डाले।
काट पेड़ तुम माँ को रुलाते।
जीव जंतु को तुम हो खाते। ४

मिट्टी कीट प्लास्टिक डाले।
मैली सरिता धुआँ उडाले।
मातृ प्रकृति को तुम्ही रुलाओ।
प्रदूषण सृष्टि में तुम ही लाओ। ५

ज्यादा सौर उपयोग में लायें।
वाहन कम साईकिल चलायें।
निर्मल पानी, दवा बिन मिट्टी।
स्वच्छ वायु प्रकृति की चिट्ठी। ६

लाल प्रकृति है तुम रुक जाओ।
रोक विनाश अब सृष्टि बचाओ।
रूठी माँ फिर क्रोधित होगीं।
वर्षा अम्ल, त्रासदी होगी। ७

करते काश प्रकृति रखवाली।
फैलती खुशियाँ डाली डाली।
रोग ताप फिर न बढ़ रहे होते।
बंशी चैन की मानुष सोते। ८

समय अभी भी कर लो सेवा।
प्रकृति दयालू मौसम रेवा।
गगन नील तुम छा जाओगे।
हो कृतज्ञ, जो प्रकृति बचाओगे । ९

🍁” अभि की डायरी से ” 🍁
🌴अभिषेक नेमा, जबलपुर मध्यप्रदेश

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