“पृथ्वीराज रासो” के पृथ्वीराज को, जयंती पर शत-शत नमन

पृथ्वीराज का पूरा जीवन शौर्य, साहस, शिष्ट कर्म और गौरवशाली कारनामों की एक सतत श्रृंखला है। दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले चौहान वंश के अंतिम शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म, आज ही के दिन सन् 1168 में, अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान के पुत्र के रूप में हुआ था।

पृथ्वीराज ने बहुत कम आयु में ढ़ेर सारी उपलब्धियां हासिल कर ली थी। अपनी पिता की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज मात्र तेरह वर्ष की आयु में अजमेर के सिंहासन पर बैठे थे। प्रतिभाशाली पृथ्वीराज सैन्य कौशल सीखने में बहुत तेज थे। उन्होंने तेरह वर्ष की आयु में, गुजरात के शासक शक्तिशाली भीमदेव को हराया था। पृथ्वीराज ने एक बार बिना किसी हथियार के एक शेर को मार दिया था।

जब पृथ्वीराज दिल्ली के सिंहासन पर बैठे तो पृथ्वीराज ने दिल्ली में किला राय पिथौरागढ़ बनवाया। अपने दुश्मन, जयचंद की बेटी, संयुक्ता के साथ उनकी प्रेम कहानी बहुत प्रसिद्ध है।

पृथ्वीराज ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया, इस दौरान महमूद गोरी ने 1191 में भारत पर हमला किया और महमूद गोरी को तराइन की पहली लड़ाई में हार मिली। महमूद गोरी की सेना को हराने के बाद, पृथ्वीराज को पीछे हटने वाली सेना पर भी हमला करने के लिए कहा गया था, लेकिन राजपूत परंपरा के खिलाफ बताते हुए पृथ्वीराज ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था क्योंकि यह उचित युद्ध नियमों के अनुरूप नहीं था। परिणामस्वरूप महमूद गोरी ने फिर से भारत पर हमला किया और तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हराकर कब्जा कर लिया। पृथ्वीराज के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया गया। उनकी आँखों को, गर्म पदार्थ डालकर जला दिया गया जिससे उनके आँखों की रोशनी चली गई। मात्र आवाज के आधार पर लक्ष्य को भेदने के कौशल से धनी थे पृथ्वीराज, जिसके फलस्वरूप पृथ्वीराज ने हिम्मत नहीं हारी। माना जाता है कि उनके दरबारी कवि और मित्र चंद बरदाई ने महमूद गोरी को अपने “शब्जभेदी बाण” से मार डाला था। पृथ्वीराज एक बहादुर राजा था। किंवदंती है कि गौरी ने दिल्ली पर 17 बार हमला किया, और वह 16 बार पृथ्वीराज चौहान और उनकी सेना के हाथों पराजित हुआ।

चंद बरदाई ने पृथ्वीराज चौहान के जीवन की कहानी को अपने महाकाव्य “पृथ्वीराज रासो” में संकलित किया है। 1192 में पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हो गई। पृथ्वीराज की मृत्यु के साथ ही बहादुरी, साहस, देशभक्ति और सिद्धांतों की अवधि भी समाप्त हो गई।

सम्पूर्ण भारत पृथ्वीराज की वीरता और पराक्रम की गाथा गाता है। पृथ्वीराज का नाम हमेशा अमर रहेगा। पृथ्वीराज के बहादुरी के किस्सों से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं जिसे पूरी तरह से इस लेख में संकलित कर पाना कठिन है।

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