कही लिपटी हुई गठरी सी.. मेरी जिंदगी मिल जाए.. | कवित्रियी ” जिग्यासा “

कही लिपटी हुई गठरी सी.. मेरी जिंदगी मिल जाए.. कही से…. तुझे अहसासो की नमी मिल जाए .. मेरी बातो की तहजीब मिल जाए .. मैं रुठु तो दुआ मिल जाए .. मैं जागु की तुझे सदा मिल जाए .. तु समझे मुझे… तु बस … समझे मुझे… ऐसी कोई वफा मिल जाए … कसमे ली थी वो यादो मे… मिल जाए…. या फिर जीने की कोई ख्वाहिश हि…. मिल जाए … तुझे… मेरे अहसासो की …..फिर से …नमी मिल जाए….. A poem by – जिगना दोषी ” जिग्यासा “

दूर सन्नाटा हुआ है बंद ताले खुल गए | ज़िंदगी को फिर सँवरने के उजाले मिल गए | गीतकार संजय पुरुषार्थी

{मुखड़ा}👇 लाॅकडाउन अनलाॅक हुआ प्रतिबंध हटा कुछ साफ हुआ …………. {अंतरा}👇 थोड़ी राहत थोड़ा संशय थोड़ा जीवन संचार हुआ जीवन की सुरक्षा की खातिर ईजाद यही उपचार हुआ लाॅकडाउन…. प्रतिबंध हटा… लाॅकडाउन…. प्रतिबंध हटा…. है कठिन दौर से गुज़र रही हर जीवन की रफ्तार सही मिलकर सबको ही करना है फिर जीवन से व्यवहार यही लाॅकडाउन…. प्रतिबंध हटा… नियमों का पालन करना ही फिलहाल सही विचार यही निश्चित है मृत्यु मगर फिर भी जीवन करना बेकार नहीं लाॅकडाउन…. प्रतिबंध हटा…. करें प्रार्थना पूजा अर्चन कोरोना का हथियार यही जियें और…

कोरोना वैरियर्स “भारतीय पुलिस” के सम्मान में बना गीत “हम खाकी वर्दीधारी हैं..” का DD-UP ने किया प्रसारण

भारतीय पुलिस के सम्मान में बना गीत “हम खाकी वर्दीधारी हैं.. का “DD-UP ने किया प्रसारण जाने माने मशहूर ऐंकर, कवि, साहित्यकार संजय पुरुषार्थी का कोरोना वैरियर्स भारतीय पुलिस के पक्ष में लिखा गया गीत “हम खाकी वर्दीधारी हैं..कोरोना पर हम भारी हैं…बेमौत नहीं मरने देंगे… जन जन की जान हमारी है…” DEARFACTS.COM में सबसे पहले प्रकाशित प्रकाशित हुआ था। जिसे हमारे न्यूज पोर्टल पर पढ़कर तमिल, मलयालम और दक्षिण भारतीय सिनेमा के संगीतकार गायक नीरज सिंह ने जहाँ अपनी ही दिलकश आवाज़ में गा कर और अपने शानदार संगीत…

पहले स्वयं जागृत होकर, आओ सारा विश्व जगाएं | रचयिता – शिव मिश्रा

कई महीनों से अवसाद ग्रस्त (Depression) होने के कारण सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या कर लेने से आज जहाँ पूरा देश शोक संतप्त है वहीं “अवसाद” पूरे विश्व के सामने एक बड़ा सवाल बन कर खड़ा है । आज के इस दौर में क्या किशोर, क्या युवा, क्या वृद्ध सभी किसी न किसी मन की आंतरिक पीड़ा के कारण अवसादग्रस्त हैं। यही मानसिक पीड़ा जब हद से ज़्यादा बढ़ जाती है तो व्यक्ति एकांत प्रिय हो जाता है साथ ही उसके व्यवहार में एक अलग सा बदलाव आ जाता है…

सृष्टि का कारण तुम्हीं हो | कवयित्री – प्रतिमा दीक्षित

सृष्टि का कारण तुम्हीं हो। सृष्टि का विध्वंस हो तुम।। सत्य हो, सुंदर हो, शिव हो। शिष्ट और अपभ्रंश हो तुम। ध्यानमग्न शमशान में सारी ही सीमा से परे तुम। महायोगी हो त्रिलोकी और त्रिगुणातीत हो तुम।। हे प्रभु! संसार हेतु चंद्रशेखर रूप धरिए। मौन में संगीत रचिये। शून्य में श्रृंगार गढ़िये ।। जीव जग मत भोग समझो। काल तुमको भींच लेगा। जन्म बस जीवन नहीं है। मृत्यु मुख भी खींच ‌लेगा। कर्म हों शंकर सदृश, होकर के निर्विकार करिये त्रिकालदर्शी स्वयं हो कर शिव में एकाकार करिये। मौन का…

सोनू सूद को समर्पित, मजदूरों के दर्द को बयाँ करता गीत “मेरी माँ” | आपकी आँखें नम कर देगा | विडियो देखें

फिल्मी पर्दे पर खलनायक का किरदार निभाने के लिए मशहूर अभिनेता सोनू सूद असल जीवन में नायक के रूप में सामने आएं हैं। कोरोना वायरस महामारी के दौरान फंसे प्रवासियों की मदद के लिए सामने आए सोनू सूद के सम्मान में शनिवार को “मेरी मां” नामक एक गीत जारी किया गया। इस गाने के बोल वंदना खंडेलवाल ने लिखे हैं और राहुल जैन ने गाने को अपनी आवाज दी है। ये गीत लॉकडाउन में आई मुसीबत के समय के आसपास घूमता है। इसमें दिखाया गया है कि जब देश भर…

कोरोना से पहले ज़िन्दगी में सब कुछ हुआ करता था | कवयित्री – अनिता शर्मा

अक्सर यह सोच कर, हैरान हो जाती हूँ कि एक महामारी ने जिंदगी का नजरिया बदल दिया. अब ना मॉल है ना सिनेमा हॉल है ना कहीं बाहर घूमने जाते हैं, घर में रहते हैं फैमिली के साथ और करने को कितनी सारी बातें हैं. यूट्यूब पर देखकर रेसिपी अब भैया और पापा भी किचन में हाथ आज़माते हैं, कैरम और लूडो जैसे खेल में जीत कर , अब दादी और मम्मी भी मुस्कुराते हैं. दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर करने को ढेर सारी चैटिंग है, बच्चों के साथ…

जान-ए-बवाल कोरोना | कवि : डॉ. विशाल

समय-समय की बात है यारों, समय-समय का खेल, घूमन के जो उस्ताद हैं यारों, घर में पड़े हैं ढ़ेर लूडो, कैरम, सांप-सीढ़ी का दिन भर खेलें खेल, सोने में तो उस्ताद हो गए, बाकी काम में फेल खाते-खाते फूल गए सब, भूल गए सब काम पूरे दिन बस टीवी मोबाइल, पूरे दिन आराम घर में बस बीबी से चिकचिक, बच्चों का कोहराम कार बाइक सब धूल खा रहे, पैर भी हो गए जाम कोई बन गया कुकिंग स्टार, कोई बन गया हज्जाम हाथ पर धरे हाथ हैं बैठे, और दिन…

रिस्क : किशोर मन का कोमल दस्तावेज | समीक्षक – रानी कुकसाल | उपन्यासकार – शरद मिश्रा

उपन्यास : रिस्क लेखक : शरद कुमार मिश्र प्रकाशक : देववाणी प्रकाशन मूल्य : ₹160 रिस्क : किशोर मन का कोमल दस्तावेज रात के अंधेरे में जीवन के गहरे रहस्य छुपे होते हैं। जीवन भी कई बार निराशा और अवसाद की काली रात से गुजरता है, लेकिन उस रात के बाद आने वाला एक चमकता दिन आप की दिशा तय करता है और मार्ग प्रशस्त करता है। दिल और दिमाग को उजालों से भर देता है। हाल ही में प्रकाशित उपन्यास ‘रिस्क’ में शरद कुमार मिश्र ने जीवन, मन, विचार…

वक्त मौन है | कवयित्री – सुविधा अग्रवाल “सुवि”

विषमता का दौर है वक्त फिर भी मौन है, अचम्भित करने सबको आया एक शोर है खामोशी से आया है जीवन में सबके छाया है, रूह को झिंझोड़ कर छिपा एक चितचोर है तिल-तिल कर मरता है कर्म करे कोई भरता है, हर किसी की आंखों में चुभता जैसे एक शूल है पाप करे फिर रोता है जागे ना कोई सोता है, टूटा मन संसार से रोया एक-एक पोर है रक्त तन से बहता जाए पीड़ा जितनी सहता जाए, घटता हर पल जीवन का चलता फिर भी हर छोर है।…