पितृ दोष के कारण एवं उसके निवारण | डॉ0 विजय शंकर मिश्र

कई बार मन में प्रश्न उठता है कि यह ” पितृदोष” क्या है ? पितृ-दोष शांति के सरल उपाय? पितृ गण कौन हैं ?आदि आदि !
पितृ गण हमारे पूर्वज हैं, जिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन हमारे लिए किया है !अतः श्राद्ध तर्पण के द्वारा हम उस ॠण हे मुक्ति का एक महत्वपूर्ण आधार है, जिसमे हम उनके प्रति श्रद्धा के साथ मुक्त होने का प्रयत्न कर सकते हैं!वास्तव मे उन्होने हमारे लिए इतना कूछ किया है जिसका उपकार हम शायद ही कभी चूका सके !मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।

आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं अगर हमारे सत -कर्म अच्छे हैं तो वह आत्माएं अपने को धन्य मानती हैं!पितर लोक से आत्मा सूर्य लोक को प्रस्थान करती हे ! वहां से स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है !लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित होती है ! जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता ! मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।

पितृ दोष क्या है:—-

हमारे पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं या नहीं !हमारे प्रति दिन पुण्य करते हैं या नहीं!शुभ मांगलिक अवसरों पर ये हमको याद करते हैं नही ! अपने ऋण चुकाने का प्रयास करते हैं या नहीं आदि आदि! ऐसा नहीं करने से ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे “पितृ- दोष” कहा जाता है।
पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है !ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है! पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं जेसे अपने आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।
इस कारण मानसिक चिन्ता ,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना , विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है! पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की दशा महादशा होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाता !, पूजा- पाठ आदि का शुभ फल नहीं मिल पाता।
पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है:–
(01)अधोगति वाले पितरों के कारण
(02).उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण!
अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण, अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग , विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय !परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति द्वारा नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।

जन्म पत्रिका और पितृ दोष;–

जन्म पत्रिका मे लग्न ,पंचम ,अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, शनि और राहू -केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है।
इनमें से भी गुरु ,शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है इनमें सूर्य से पिता या पितामह , चन्द्रमा से माता या मातामह ,मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है।
अधिकाँश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु ,शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है ,इसलिए विभिन्न उपायों को करने के साथ साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी ,सातमुखी और आठ मुखी रुद्राक्ष भी धारण कर ले , तो पितृ दोष का निवारण शीघ्र हो जाता ! अन्य उपाय जैसे मंत्र जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी उतम रहता है!
इसके अलावा अमावस्या को पीपल में दीपक करे ओर ज्ञात अज्ञात पितरो के निर्मित प्रसाद करना, श्रीमद्भागवत महापुराण का पाठ ,हरिवंश महापुराण, गीता पाठ महात्म्य सहित ,नारायण बलि ,गया श्राद्ध, पुष्कर जी तर्पण आदि उतम विधान बताये गये हैं!

डॉ0 विजय शंकर मिश्र

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