आज है 21वां कारगिल विजय दिवस, आज ही के दिन 18000 फिट ऊंची चोटी पर फहराया था तिरंगा

सांस का हर सुमन है वतन के लिए
जिन्दगी एक हवन है वतन के लिए
कह गए कारगिल में गोली खाने वाले
ये हमारा नमन है वतन के लिए॥

आज कारगिल विजय दिवस भारत की अस्मिता पर घात करने वाले आक्रमणकारियों को मुंहतोड़ जवाब देकर अपने पराक्रम का लोहा मनवाने वाले और अपनी मातृभूमि पर प्राण न्यौछावर करने वाले भारतीय सेना के वीर रणबांकुरो का पुण्य स्मरण करते हुए Dearfacts.com परिवार कोटिशः नमन करता है..

आज कारगिल विजय दिवस के 21 साल पूरे हो गए। 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में भारत को विजय मिली थी, इस वजह से हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। 1999 में करगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा जमा लिया था, जिसके बाद भारतीय सेना ने उनके खिलाफ ऑपरेशन विजय चलाया। ऑपरेशन विजय 8 मई से शुरू होकर 26 जुलाई तक चला था।
भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य में आज से 18 वर्ष पहले भारतीय सेना ने 26 जुलाई, 1999 के ही दिन नियंत्रण रेखा से लगी कारगिल की पहाड़ियों पर कब्ज़ा जमाए आतंकियों और उनके वेश में घुस आए पाकिस्तानी सैनिकों को मार भगाया था। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ यह पूरा युद्ध ही था, जिसमें पांच सौ से ज़्यादा भारतीय जवान शहीद हुए थे। इन वीर और जाबांज जवानों को पूरा देश ’26 जुलाई’ के दिन याद करता है और श्रद्धापूर्वक नमन करता है। देश की इस जीत में कारगिल के स्थायी नागरिकों ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी।

कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुए युद्ध का नाम है। कारगिल युद्ध लगभग दो महीने तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर हमला किया और उसे वापिस हासिल किया।

यह दुनिया का पहला ऐसा युद्ध था जो इतनी ऊंचाई पर लड़ा गया। यह युद्ध 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था। जिसमें भारत की ओर से बोफोर्स तोपों ने निर्णायक भूमिका निभाई थी। पाकिस्तानी घुसपैठियों के भेष में पाकिस्तान की सेना के खिलाफ भारतीय सेना की कार्यवाही में बड़ी संख्या में पाकिस्तान के सैनिक मारे गए थे।

हिमालय से ऊँचा था साहस उनका : इस युद्ध में हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हो गए, जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है।

इन रणबाँकुरों ने भी अपने परिजनों से वापस लौटकर आने का वादा किया था, जो उन्होंने निभाया भी, मगर उनके आने का अन्दाज निराला था। वे लौटे, मगर लकड़ी के ताबूत में। उसी तिरंगे मे लिपटे हुए, जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने उठाई थी। जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जाँबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था।

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