लालजी टंडन बीजेपी के ऐसे नेता, जिन्हें मायावती चांदी की राखी बांधा करती थीं |

मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन का मंगलवार को लखनऊ में निधन हो गया है. लालजी टंडन का पिछले काफी द‍िनों से लखनऊ के मेदांता अस्‍पताल में इलाज चल रहा था. वो उत्तर प्रदेश की राजनीति में बीजेपी के दिग्गज नेता माने जाते थे. बीएसपी के भीतर ही नहीं बल्कि दूसरे दल के लोग भी मायावती को बहनजी ही बुलाते हैं. इन्हीं में से एक लालजी टंडन भी थे, जिन्हें बसपा प्रमुख मायावती बकायदा राखी बांधने उनके घर जाया करती थीं.

बसपा और बीजेपी के गठबंधन के पीछे लालजी टंडन की अहम भूमिका थी. लालजी टंडन कभी बसपा सुप्रीमो मायावती के मुंहबोले भाई हुआ करते थे. चौक की पुरानी गलियों में मायावती बतौर मुख्यमंत्री दो बार टंडन को राखी बांधने उनके घर गईं. 22 अगस्त 2002 को मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने बीजेपी नेता लालजी टंडन को राखी बांधी थी. वो राखी भी कोई आम राखी नहीं बल्कि चांदी की राखी थी.

दरअसल, 1995 में लखनऊ का गेस्ट हाउस कांड के दौरान मायावती की जान खतरे में पड़ी, तब भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी और लालजी टंडन मौके पर पहुंचे थे. बीजेपी नेता उमा भारती ने खुद एक बयान में कहा था कि ब्रह्मदत्त द्विवेदी और लालजी टंडन ने भाजपा कार्यकर्ताओं की मदद से मायावती उस समय बचाया था. इसके बाद मायावती ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और मुख्यमंत्री बनी थी. यहीं से मायावती और लालजी टंडन के बीच भाई-बहन का रिश्ता कायम हुआ.

लालजी टंडन को उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई अहम प्रयोगों के लिए भी जाना जाता है. 90 के दशक में प्रदेश में बीजेपी और बसपा की गठबंधन सरकार बनाने में भी उनका अहम योगदान माना जाता है. इसके बाद लालजी 1996 से 2009 तक लगातार तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. बसपा सुप्रीमो मायावती उन्हें अपने बड़े भाई की तरह मानती थीं और राखी भी बांधा करती थीं. 1997 में वह प्रदेश के नगर विकास मंत्री रहे. लालजी टंडन के निधन पर मायावती ने ट्वीट कर अपनी संवेदना व्यक्त की है.

लालजी टंडन संघ से सियासत में आए और पार्षद से सांसद और राजभवन तक का सफर तय किया था. लालजी टंडन खुद कहा करते थे कि अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति में उनके साथी, भाई और पिता तीनों की भूमिका अदा की है. अटल के साथ उनका करीब 5 दशकों का साथ रहा. इतना लंबा साथ अटल का शायद ही किसी और राजनेता के साथ रहा हो.

लालजी टंडन का जन्म 12 अप्रैल 1935 को हुआ था. अपने शुरुआती जीवन में ही लालजी टंडन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए थे. उन्होंने स्नातक तक पढ़ाई की. इसके बाद 1958 में लालजी का कृष्णा टंडन के साथ विवाह हुआ. उनके बेटे गोपाल जी टंडन इस समय उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री हैं. संघ से जुड़ने के दौरान ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उनकी मुलाकात हुई. लालजी शुरू से ही अटल बिहारी वाजपेयी के काफी करीब रहे. यूपी की सियासत में लालजी टंडन की अहम भूमिका हुआ करती थी.

लालजी टंडन का राजनीतिक सफर साल 1960 में शुरू हुआ. टंडन दो बार पार्षद चुने गए और दो बार विधान परिषद के सदस्य रहे. 1978 से 1984 तक और 1990 से 1996 तक लालजी टंडन दो बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे. इस दौरान 1991-92 में बीजेपी सरकार में मंत्री बने.

1996 से 2009 तक लगातार तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. कल्याण सिंह से लेकर राजनाथ सिंह तक की सरकार में मंत्री रहे और 2009 में लखनऊ से सांसद चुने गए. इसके बाद लालजी टंडन को साल 2018 में बिहार के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और फिर कुछ दिनों के बाद मध्य प्रेदश का राज्यपाल बनाया गया था.

लालजी टंडन ने अपनी किताब ‘अनकहा लखनऊ’ में कई खुलासे किए. इसमें उन्होंने पुराना लखनऊ के लक्ष्मण टीले के पास बसे होने की बात कही थी. उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि लक्ष्मण टीला का नाम पूरी तरह से मिटा दिया गया है, अब यह स्थान टीले वाली मस्जिद के नाम से जाना जा रहा है. लालजी टंडन ने पार्षद से लेकर कैबिनेट मंत्री और दो बार सांसद तक का 8 दशक से अधिक का सामाजिक एवं सियासी सफर दर्ज किया है.

लालजी टंडन के अनुसार, लखनऊ के पौराणिक इतिहास को नकार ‘नवाबी कल्चर’ में कैद करने की कुचेष्टा के कारण यह हुआ. लक्ष्मण टीले पर शेष गुफा थी, जहां बड़ा मेला लगता था. खिलजी के वक्त यह गुफा ध्वस्त की गई. बार-बार इसे ध्वस्त किया जाता रहा और यह जगह टीले में तब्दील हो गई. औरंगजेब ने बाद में यहां एक मस्जिद बनवा दी.

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