लाॅकडाउन के बाद 50% तक शुद्ध हुई देश की हवाएँ, नदियाँ एवं पर्यावरण | देखें TERI की रिपोर्ट

लाॅकडाउन के दौर में लोगों को परेशानी और अर्थव्यवस्था को लगे झटके के बीच एकमात्र सकारात्मक चीज साफ होती हवा है। देश के 5 सबसे प्रदूषित कहे जाने वाले दिल्ली, गाज़ियाबाद, नोयडा, ग्रेटर नोयडा और गुड़गांव में लाकडाउन (24 मार्च) से पहले की तुलना में 50% प्रदूषण घटा है। दुनिया के दूसरे बड़े प्रदूषित शहर बीजिंग, बैंकॉक, साओ पालो और बोगोटा में भी फिज़ा साफ हो गई है।

लाॅकडाउन में गायब हो गए सभी प्रदूषक तत्व


दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टिट्यूट (टैरी) ने 2018 में जो रिपोर्ट तैयार की उसके मुताबिक दिल्ली में PM2.5 की 39% वाहनों से था। इस शोध के मुताबिक वाहन 19% PM 10 कणों के लिये और 81% NOx के लिये ज़िम्मेदार थे। लॉकडाउन से ये सारे प्रदूषक गायब से हो गये हैं। दिल्ली, नोयडा, गुरुग्राम और जयपुर में लॉकडाउन के बाद PM 2.5 और PM 10 में 40% से अधिक गिरावट हुई है, बहुत सारे शहरों में NOx के स्तर में 50% कमी आई है। कानपुर में यह 72% गिरा है।

हम भी समझें अपनी जिम्मेदारी


लाॅकडाउन खुलने के पश्चात जिंदगी की रफ्तार पकड़ने के साथ ही साथ फिर से पर्यावरण पर संकट के बादल मंडराने शुरू हो गए है! मानव के बेतरतीब विकास द्वारा कीट -पतंगे, पशु-पक्षी, जलवायु और प्राकृतिक सौंदर्य की नैसर्गिक दृश्यावालियां गायब होने की कगार पर है, हम कुछ भी तो नहीं सहेज पा रहे हैं! इसमें कोई शक नहीं कि प्रकृति के सामने किसी की भी कोई हैसियत नहीं है, अपने प्रकोप से गाहे-बगाहे वह हमें इशारा भी करती है! इन सब सारी बातों के जानने और समझने के बाद भी विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ करना छूटता नहीं! फलस्वरूप हमें प्राकृतिक आपदा, बाढ़, सूखा का तांडव को भुगतना पड़ रहा है!

आज पर्यावरण अंतर्राष्ट्रीय चिंता का विषय है! जलवायु परिवर्तन पर अंतराष्ट्रीय जगत में बहस का विषय है! गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन से विश्व के सभी देश प्रभावित हैं! ग्लोबल वार्मिंग के चलते पर्यावरण ही नहीं, बल्कि राजनीति, अर्थव्यवस्था और कृषि उत्पादन के साथ जनजीवन पर भी पड़ा है! हमारे देश में भी पर्यावरण लेकर हम संजीदा नहीं है!

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नतीजतन देश कई तरह के खतरों से जूझ रहा है! पहाड़, नदियाँ, जंगल बेतरतीब विकास की कीमत चुका रहें है! नदियाँ एवं पेड़ -पौधे जिन्हें हम सदैव पूजते आ रहे हैं, हम उनके अस्तित्व मिटाने पर तुले हैं! पहाड़ों का क्षरण, अंधाधुंध कटते वन और अदूरदर्शिता से बने बाँधों ने सदियों से चले आ रहे प्राकृतिक संतुलन को इस कदर बिगाड़ा है कि कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा के हालात पैदा हो गये है! पेयजल का गंभीर संकट खड़ा हो गया है! सरकारी स्तर पर जो कदम इस संकट से निपटने के लिए किया जा रहा है नाकाफी है!

आम लोगों का भी नजरिया सकारात्मक नहीं है! आज आधुनिकता एवं विकास के नाम पर तमाम प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ और परंपरागत जल स्त्रोतों की अनदेखी करने वालों में हम सभी आगे हैं! देश की तमाम छोटी -बड़ी नदियाँ प्रदूषित हो गयी हैं! आज देश के प्रत्येक शहर कम या ज्यादा प्रदूषण के शिकार हैं! वर्तमान स्थिति देख यही अनुमान लगाया जा सकता है कि हमें आने वाले समय की भयावहता का अंदाजा नहीं है तथा हम कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है! हमारा यह रवैया हमारे लिए ही घातक है!

वक्त का तकाज़ा है कि हम विश्व पर्यावरण दिवस पर यह संकल्प लें कि पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में हम हर संभव प्रयास करेंगे वरना आने वाली हमारी नयी पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी!

फिर से घुस सकते हैं गैस चेंबर में..


जानकारों की राय से समझ आता है कि हवा साफ करने के लिये जो नेशनल क्लीनएयर प्रोग्राम (NCAP)पिछले साल शुरू किया गया है वह कितना अहम है। लेकिन अभी इस प्रोग्राम की कवरेज और इसके लक्ष्य को काफी मज़बूत किये जाने की ज़रूरत है। NCAP के तहत अभी महज़ 122 शहर शामिल हैं जिन्हें 2024 तक केवल 30% प्रदूषण कम करना है। ज़ाहिर है प्रदूषण से हो रही बीमारियों के फैलाव का जो अलार्म बेल पिछले कुछ वक्त में सुनाई दिया है उसे देखते हुये इस क्लीनएयर प्रोग्राम को काफी सुदृढ़ करने की ज़रूरत है। कोरोना महामारी से निकलने के बाद एक बार फिर से हम गैस चैंबर में घुस सकते हैं और तब साफ हवा का जो तात्कालिक फायदा होता दिखता है वह हमारे पास नहीं रहेगा।

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