पूर्वजों की खोज है चूड़ियाँ | जानें चूड़ियों का महत्व एवं वैज्ञानिक प्रभाव | आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र

अधिकतर महिलायें चूड़ियाँ या कंगन अवश्य पहनती हैं। चूड़ियाँ और कंगन शादी शुदा महिला के लिए ख़ासा महत्व रखती हैं। कई प्रान्तों में तो इतना महत्व है की सोना नहीं तो कांच की चूड़ियाँ पहनना जरुरी होता है। बंगाल में शंका-पोला तो पंजाब में चूङे… अलग अलग प्रान्तों में अलग अलग चलन है। कहा जाता है की नई नवेली दुल्हन की कलाई चूड़ियों से भरी होती है।

आमतौर पर इस सम्बन्ध में यही मान्यता है की चूड़ियाँ सुहाग की निशानी होती है और इसी कारण से पहनी जाती है। चूड़ियों की पहनने के पीछे सुहाग की निशानी के आलावा कई अन्य महत्वपुणृ कारण भी हैं।

1- चिकत्सा के आधार पर चूड़ियों का महत्व
2- वैज्ञानिकता के आधार पर चूड़ियों का महत्व
3-मान्यता के आधार पर चूड़ियों का महत्व

1- चिकत्सा के आधार पर चूड़ियों का महत्व-


चूड़ियों के हिलने और बजने से जो मधुर ध्वनि निकलती है, उस संगीत से मनुष्य को शारीरिक और मानसिक तोर पर बहुत लाभ मिलता है।
चिकित्सक मानते है की संगीत में औषधीय गुण हैं और मनुष्य के स्वास्थ्य पर संगीत का उपयोग कर सकते हैं। एक प्रसिद्ध चिकित्सक जेम्स कॉर्निंग ने, मानव शारीर पर संगीत का सकारत्मक प्रभाव पर पहली बार शोध किया और कहा की संगीत से मानसिक बीमारी का इलाज कर सकते हैं इससे दिल, उच्च रक्तचाप, अवसाद जैसे रोगों का भी इलाज कर सकते हैं।
एक सर्वे में मधुर ध्वनि सुनने से बेहतर मूड, तनाव में कमी और सामाजिक व् आध्यात्मिक लाभ महसूस किये गए। मधुर ध्वनि तनाव को कम करके प्रतिरोधक प्रणाली पर सकरात्मक प्रभाव डालता है।
इन सभी बातो का ज्ञान हमारे पूर्वजों को पहले से था इसलिए उन्होंने स्त्रियों को चूड़ियाँ पहनवाकर उन्हें हमेशा स्वस्थ रखने का उपाय खोजा। चूड़ियाँ हमारे पूर्वजों का खोजा गया आविष्कार है। जिससे घर में हर वक्त मधुर ध्वनि बजती रहे, जिसे सुनकर स्त्रियां और पूरा परिवार चूड़ियों के खनकने से उत्पन्न सकारात्मक ध्वनि से लाभान्वित होते रहें।
महिलाएं पुरुषों से अधिक मानसिक और शारीरिक तौर पर काम करती हैं इसी कारण वह बीमार भी अधिक होती हैं इसलिए उनकी प्रतिरोधात्मक क्षमता को बढ़ाने और एकाग्रता को बनाये रखने के लिए, चूड़ियों का उपयोग महिलाओं के लिए ही किया गया।
आजकल अधिकाँश महिलायें चूड़ियाँ नहीं पहनती हैं। इस कारण कई महिलाओं को कमजोरी और शारीरिक शक्ति का अभाव महसूस होता है, जल्दी थकान हो जाती है और कम उम्र में ही गंभीर बीमारियां घेर लेती हैं। जबकि पुराने समय में महिलाओ के साथ ऐसी समस्याएं नही होती थी। चूड़ियों के कारण स्त्रियों को ऐसी कई समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।

2- वैज्ञानिकता के आधार पर-


मनुष्य के शारीर में कलाइयां, बाकी सभी अंगो से ज्यादा उपयोग में आती है। किसी भी बीमारी में हम कलाई की नब्ज देखते हैं। चूड़ियाँ जो महिलाओं की कलाई में पहनी जाती हैं, कलाइयां और चूड़ियों के बीच होने वाले घर्षण से महिलाओं के शारीर में रक्त का संचार बढ़ता है।
महिलाओं के अधिक काम करने की वजह से, उनके शारीर से जो ऊर्जा बाहर निकलती है और व्यर्थ हो जाती है जिससे महिलाओं को जल्दी थकान महसूस होती है, वो ऊर्जा चूड़ियों के गोलाकार के कारण शारीर से बाहर नहीं निकल पाती और महिलाओं की ऊर्जा व्यर्थ नहीं होती, जिससे उन्हें जल्दी थकान भी नहीं महसूस नहीं होती।

3- मान्यता के आधार पर-


चूड़ियों के संभंध में मान्यता यह है की जो विवाहित महिलाऐं चूड़ियाँ पहनती हैं, उनके पति की उम्र लंबी होती है। आमतौर पर ये बात सभी लोग जानते हैं। इसी वजह से चूड़ियाँ विवाहित स्त्री के लिए अनिवार्य की गयी है। किसी भी स्त्री का श्रृंगार चूड़ियों के बिना पूर्ण नहीं हो सकता। चूड़ियाँ स्त्रियों के 16 श्रृंगारों में से एक है। चूड़ियाँ स्त्रियों के लिए सोभाग्य का प्रतीक है।

इन सभी आधारों के आलावा भी कई ऐसे आधार हैं जो हमें बताते हैं की स्त्री के लिए चूड़ियाँ कितनी महत्वपूर्ण हैं। जैसे-
-आयुर्वेद के अनुसार, चूड़ियाँ महिलाओं के लिए स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभदयक होती है। चूड़ियों के निर्माण में विभिन्न प्रकार की धातुओं उपयोग होता है। अगर ये लगातार शारीर को स्पर्श करे तो उसका सुप्रभाव शारीर को प्राप्त होता है और विभिन्न रोगों से रक्षा होती है।
-ज्योतिष के अनुसार विशेष प्रकार के रंग, धातु आदि होने से विभिन्न ग्रहों का दोष उससे दूर होता है और इसका शुभ प्रभाव गृहस्थ जीवन में आता है।

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इस प्रकार हर तथ्य और साक्ष्य हमें ये बताते हैं की चूड़ियाँ, महिलाओं के जीवन में अत्यंत आवश्यक है। चूड़ियों के पहनने से पति और पत्नी के बीच परस्पर प्रेम बढ़ता है। माँ जब अपने बच्चे को सुलाती है तो चूड़ियों से निकली ध्वनि लोरी का काम करती है।
चूड़ियाँ पहनने पर महिलाओं को अपने स्त्रीत्व पर गर्व होना चाहिए। चूड़ियाँ ही महिलाओं के श्रृंगार की पहचान है, चूड़ियों की ध्वनि प्रेम की भाषा है, चाहे वो अपने पति के लिए हो, चाहे वो अपने बच्चे के लिए हो और चाहे वो अपने परिवार के लिए हो। महिलायें इसी प्रेम की भाषा से अपने परिवार का दिल जीतती हैं।
भारतीय महिलाएं, पश्चिम सभ्यता पर ना जाएँ और अपनी संस्कृति को अपनाएं। वंहा शादियां भी कुछ दिनों की होती हैं, वो कैसे समझेगी चूड़ियों का महत्व। हमारे यंहा शादी सात जन्म का रिश्ता माना जाता है, इतना मजबूत प्रेम का रिश्ता और कहीं नहीं मिलेगा और इसी रिश्ते को मजबूती से बांधे रखती है हमारी चूड़ियाँ।

आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र

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