जानिए भगवान शिव की अमंगल वेशभूषा का रहस्य | आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र

समस्त हिन्दू देवी – देवताओ में महादेव शिव की वेशभूषा सबसे विचित्र और रहस्मयी है तथा आध्यात्मिक रूप से भगवान शिव के इस वेश और रूप में अत्यन्त गहरे अर्थ छिपे हुए है।

पुराणों के अनुसार भगवान शिव के वेश-भूसा से जुड़े इन प्रतिको के रहस्यों को जान लेने पर मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।भगवान शिव की वेश-भूसा ऐसी है की हर धर्म का व्यक्ति उसमे अपना प्रतीक ढूढ़ सकता है।
आइये जानते है भगवान शिव और उनकी वेश-भूसा से जुड़े रहस्य।

क्यों है भगवान शिव के ललाट पर तीसरा नेत्र :-


हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार अधिकतर सभी देवताओ की दो आँखे है परन्तु भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे देवता बताए गए है जिनकी तीन आँखे है जिस कारण वे त्रिनेत्रधारी भी कहलाते है। हिन्दू धर्म के अनुसार ललाट पर तीसरी आँख आध्यात्मिक गहराई को बताती है।

तीसरी आँख से अभिप्राय मनुष्य का संसार के सभी बन्धनों से मुक्त होकर सम्पूर्ण रूप से ईश्वर को प्राप्त हो जाना है। जहा भगवान शिव की तीसरी आँख स्थित है वह आज्ञा चक्र का स्थान भी है जो मनुष्य के बुद्धि का स्रोत कहलाता है। आज्ञा चक्र ही विपरीत परिस्थिति में मनुष्य को निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है।

मस्तक पर चन्द्र का विराजमान होना :-


भगवान शिव के मस्तक में चन्द्रमा विराजित होने के कारण वे भालचन्द्र के नाम से भी प्रसिद्ध है। चन्द्रमा का स्वभाव शीतल होता है तथा इसकी किरणे शीतलता प्रदान करती है। ऐसा अक्सर देखा गया है की जब मनुष्य का दिमाग शांत होता है तो वह बुरी परिस्थितियों का और बेहतर ढंग से सामना करता है तथा उस पर काबू पा लेता है वही क्रोधी स्वभाव वाले मनुष्य की परेशानियां और अधिक बढ़ जाती है।

ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा को मन का प्रतीक माना गया है तथा मन की प्रवृति बहुत चंचल होती है। मनुष्य को सदैव अपने मन को वश में रखना चाहिए नहीं तो यह मनुष्य के पतन का कारण बनता है. इसी कारण से महादेव शिव ने चन्द्रमा रूपी मन को काबू कर अपने मस्तक में धारण किया है।

अस्त्र के रूप में त्रिशूल :-


भगवान शिव सदैव अपने हाथ में एक त्रिशूल पकड़े रहते है जो बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र है तथा इसके शक्ति के आगे कोइ अन्य शक्ति केवल कुछ क्षण मात्र भी ठहर नहीं सकती।

त्रिशूल संसार की तीन प्रवृत्तियों का प्रतीक है जिसमे सत का मतलब सात्विक, रज का मतलब संसारिक और तम का मतलब तामसिक होता है। हर मनुष्य में ये तीनो ही प्रवृत्तियाँ पाई जाती है तथा इन तीनो को वश में करने वाला व्यक्ति ही आध्यात्मिक जगत में आगे बढ़ पता है। त्रिशूल के माध्यम से भगवान शिव यह संदेश देते है की मनुष्य का इन तीनो पर ही पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए।

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गले में नाग को धारण करना :-


भगवान शिव जितने रहस्मयी है उतने ही रहस्मय उनके वस्त्र और आभूषण भी है। जहा सभी देवी-देवता आभूषणो से सुस्जित होते है वही भगवान शिव एकमात्र ऐसे देव है जो आभूषणो के स्थान पर अपने गले में बहुत ही खतरनाक प्राणी माने जाने वाले नाग को धारण किये हुए है।

भगवान शिव के गले में लिपटा हुआ नाग जकड़ी हुई कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है। भारतीय अध्यात्म में नागो को दिव्य शक्ति के रूप में मान कर उनकी पूजा अरचना की जाती है परन्तु वही कुछ लोग बिना वजह इन से डर कर इनकी हत्या कर देते है।

भगवान शिव अपने गले में नाग को धारण कर यह सन्देश देते है की पृथ्वी के इस जीवन चक्र में प्रत्येक छोटे-बड़े प्राणी का अपना एक विशेष योगदान है अतः बिना वजह किसी प्राणी की हत्या नहीं करनी चाहिए।

भगवान शिव का वाद्य यंत्र डमरू :-


भगवान शिव का वाद्य यंत्र डमरू ”नाद” का प्रतीक माना जाता है तथा पुराणों के अनुसार भगवान शिव को संगीत का जनक माना गया है। नाद का अर्थ होता है ऐसी ध्वनि जो बृह्मांड में निरंतर जारी रहे जिसे ओम कहा जाता है।

भगवान शिव दो तरह का नृत्य करते है, तांडव नृत्य करते समय भगवान शिव के पास डमरू नहीं होता तथा जब वे डमरू बजाते हुए नृत्य करते है तो हर ओर आनंद उतपन्न होता है।

जटाएं :


शिव अंतरिक्ष के देवता हैं। उनका नाम व्योमकेश है अत: आकाश उनकी जटास्वरूप है। जटाएं वायुमंडल की प्रतीक हैं। वायु आकाश में व्याप्त रहती है। सूर्य मंडल से ऊपर परमेष्ठि मंडल है। इसके अर्थ तत्व को गंगा की संज्ञा दी गई है अत: गंगा शिव की जटा में प्रवाहित है। शिव रुद्रस्वरूप उग्र और संहारक रूप धारक भी माने गए हैं।

भगवान शिव और भभूत या भष्म :-


भगवान शिव अपने शरीर में भष्म धारण करते है जो जगत के निस्सारता का बोध कराती है. भष्म संसार के आकर्षण, माया, बंधन, मोह आदि से मुक्ति का प्रतीक भी है. यज्ञ के भस्म में अनेक आयुर्वेदिक गुण होते है।

भष्म के प्रतीक के रूप में भगवान शिव यह संदेश देते है की पापो के कामों को छोड़ मनुष्य को सत मार्ग में ध्यान लगाना चाहिए तथा संसार के इस तनिक भर के आकर्षण से दूर रहना चाहिए क्योकि जगत के विनाश के समय केवल भस्म (राख) ही शेष रह जाती है तथा यही हाल हमारे शरीर के साथ भी होता है।

भगवान शिव को क्यों है प्रिय भांग और धतूरा :-


आयर्वेद के अनुसार भांग नशीला होने के साथ अटूट एकाग्रता देने वाला भी माना गया है। एकाग्रता के दम पर ही मनुष्य अपना कोई भी कार्य सिद्ध कर सकता है तथा ध्यान और योग के लिए भी एकाग्रता का होना अतयधिक महत्वपूर्ण है. इसिलए भगवान शिव को भांग और धतूरा अर्पित किया जाता है जो एकाग्रता का प्रतीक है।

आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र

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