क्यों समाप्त हो गया अयोध्या का वैभव ? पढ़ें अयोध्या के श्रीविहीन होने की कहानी।

अयोध्या अर्थात जिसे युद्ध में जीता न जा सके । अयोध्या जिसकी स्थापना स्वयं सूर्य पुत्र मनु ने की थी । अयोध्या जिसकी तुलना इंद्र के अमरावती नगरी से की जाती है । वाल्मीकि रामायण में अयोध्या की वैभवशीलता का विस्तार से वर्णन है । जिस राज्य के राजा साक्षात सूर्य वंश से थे । जिसके राजाओं से स्वयं इंद्र भी सहायता मांगने आते थे । जिस राज्य के राजा नहुष को इंद्र का सिंहासन मिला था । जिस राज्य के महान राजा रघु के नाम पर रघुवंश पड़ा जिसमें साक्षात श्री हरि विष्णु ने श्री राम के रुप में जन्म लिया । जिस राज्य को आज तक कोई पराजित न कर सका वो अचानक कैसे खत्म हो गई । वाल्मीकि अपने रामायण के प्रारंभ में भी अयोध्या की महान नगरी का विस्तार से वर्णन करते हुए कहते हैं –

अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता !
मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम् !! १-५-६
( अयोध्या नगरी जो तीनों लोको में विख्यात थी और इसका निर्माण स्वयं मनु ने अपने हाथों से किया था )

प्रासादै रत्नविकृतैः पर्वतैरुपशोभिताम् |
कूटागारैश्च सम्पुर्णामिन्द्रस्येवामरावतीम् |१-५-१५
(अयोध्या नगरी के महलें रत्नों से सुसज्जित थी और इंद्र की नगरी अमरावती से उसकी तुलना की जाती थी )

कामी वा न कदर्यो वा नृशंसः पुरुषः क्वचित् |
द्रष्टुं शक्यमयोध्यायां नाविद्वान्न च नास्तिकः || १-६-८
(अयोध्या में न तो कोई काम वासना से ग्रसित था , न कोई दुष्ट और हत्यारा रहता था , और न ही कोई नास्तिक रहता था )

ऐसे अयोध्या पर ईक्ष्वाकु वंश के महाराजा दीलिप, रघु, नहुष , अरण्य , दशरथ और भगवान श्री राम ने शासन किया । लेकिन श्री राम के जाने के बाद अयोध्या का क्या हुआ । इसकी जानकारी कालिदास रचित महान ग्रंथ रघुवंशम् में दी गई है । रघुवंशम् की कथा के अनुसार श्री राम के स्वर्गारोहण के पश्चात उनके सबसे बड़े पुत्र कुश ने कुशावती को अपनी राजधानी बनाया और उनके दूसरे पुत्र लव ने शरावती को अपनी राजधानी बनाया । लक्ष्मण के पुत्रों ने करावती को अपना केंद्र बनाया तो भरत के पुत्र पुष्कल ने पुष्करावती अर्थात पेशावर को अपनी राजधानी बनाया । शत्रुघ्न के पुत्रों ने मथुरा से शासन करना प्रारंभ किया । इस प्रकार अयोध्या पूरी तरह से रघुवंश से विहीन हो गई ।

कुश से फिर से बसाई अयोध्या


रघुवंशम के अनुसार एक बार कुश अपने महल में सोये हुए थे तो रात के अंधेरे में एक स्त्री उनके सामने आई । कुश ने उनका परिचय पूछा तो उस स्त्री ने कहा कि वो अयोध्या की अधिष्ठात्री देवी हैं । श्री राम के जाने के बाद अयोध्या पूरी तरह से स्वामीविहीन हो गई है और उसकी दुर्दशा हो गई है । अयोध्या की देवी ने कुश से वापस अयोध्या को बसाने के लिए निवेदन किया। कुश वापस अयोध्या आते हैं और फिर से अयोध्या को बसाते हैं। एक बार फिर अयोध्या वापस अपने वैभव में लौट जाती है । कुश सरयू नदी के अंदर रहने वाले नागराज कुमुद की पुत्री कुमुदनी से विवाह करते हैं और न्यायपूर्वक शासन चलाने लगते हैं ।

कुश के वंशजों ने किया अयोध्या से राज


इंद्र के बुलावे पर कुश दुर्जय राक्षस को मारने के लिए इंद्र के साथ जाते हैं । इंद्र की सहायता मे कुश दुर्जय को मार डालते हैं लेकिन वो भी वीरगति को प्राप्त होते हैं ।ऐसे में कुश के पुत्र अतिथि को अयोध्या का राजा बनाया जाता है। अतिथि भी न्यायपूर्वक शासन करते हैं। अतिथि के बाद कई अन्य राजा आते हैं जो अयोध्या वैसी ही वैभवशाली रहती है ।

कैसे हुई अयोध्या फिर से शासक विहीन


कुश के वंशजो में आखिरी राजा अग्निवर्ण था । अग्निवर्ण अपने कुल के महान राजाओं के विपरीत बहुत ही बड़ा कामांध और विलासी निकला । वो नित नई स्त्रियों के साथ अवैध संबंध बनाता और दिन रात विलास में ही लीन रहता था । प्रजा से उसका संपर्क बिल्कुल ही खत्म हो गया था । मंत्रियों को राजा अग्निवर्ण की इस स्थिति को देख कर बहुत दुख होने लगा । मंत्रियों ने राजा की अनुपस्थिति के कारणों को छिपाने के लिए प्रजा में ये बात फैला दी कि राजा गुप्त रुप से संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे हैं ।
इधर अग्निवर्ण के कामवासना की सीमाएं बढ़ती ही जा रही थीं। वो दासियों को भी अपने वासना का शिकार बनाने लगा । धीरे – धीरे अधिक विलास की वजह से राजा अग्निवर्ण का शरीर कमजोर पड़ने लगा और उसे राजयक्ष्मा की बीमारी हो गई।एक दिन राजा का बीमारी से निधन हो गया।

अग्निवर्ण की गर्भवती पत्नी बनी अयोध्या की शासिका


लेकिन मंत्रियों ने राजा की इस स्थिति को छिपाने की कोशिश की और राजा का अग्नि संस्कार महल के अंदर ही गुप्त रुप से कर दिया । राजा की एक रानी जो गर्भवती थी उसे ही सिंहासन पर बिठा दिया गया ।
इसके बाद की कथा रघुवंशम में भी नही है । लेकिन धीरे -धीरे अयोध्या का वैभव खत्म हो गया । जिन महान संयमी राजाओं के शासन के लिए अयोध्या विख्यात थी । जिस मर्यादापुरुषोत्तम एक पत्नीव्रता के लिए अयोध्या प्रसिद्ध थी , उसी अयोध्या का पतन रघुकुल के ही एक राजा की कामवासना की वजह से हो गया ।

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