भारत की अर्थव्यवस्था का अवलोकन | कवि – “पांडेय नज़र इलाहाबादी”

भारत की अर्थव्यवस्था का अवलोकन करने निकला हूँ।
इसमें करते जो योगदान, अभिनंदन करने निकला हूँ।।

वीर सपूत हैं भारत के जो , पीते और पिलाते हैं।
‘कोरोना के महायुद्ध’ में, वो अपना हाथ बटाते हैं।
जैसे ही “सी एम गण “ने उनका , है आह्वान किया।
टूट पड़े तन-मन-धन से अपना प्रदेश धनवान किया।
चिन्ता उन्हें नहीं थी , खुद जीने की परवाह नहीं।
किसी तरह मिल जाये दारू दिल में दूजी चाह नहीं।
थी राह न कोई भी खाली, हर जगह दिखाई देते थे।
धीरज से लग के लाइन में , जितनी मिल जाये लेते थे।
सरकारें नहीं चला करतीं , खुद ही के बलबूतों से।
आज हुआ मालूम हमें भी चलतीं इन वीर सपूतों से।
दारू पीना बहुत बुरा है , मैं खण्डन करने निकला हूँ।

इसमें करते जो योगदान अभिनन्दन करने निकला हूँ।।

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“पांडेय नज़र इलाहाबादी”

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