खुदा की ख़ामोशी । कवी : अभिनयकुमार सिंह

ऐ खुदा बता तूने किसके नाम जगत लिखा है ?
ये कौन है जो तेरे इनायतों को बाँटता है ?
परिंदे भी राह भटकने लगे है आसमानो में,
ये कौन है जो तेरे सल्तनत पर राज करता है ।

सागर पर तूने किसका हक़ लिखा है ?
ये कौन है जो पानी को नाम से पुकारता है ?
पानी तो घुल जाता है मिलकर पानी में,
तो ये कौन है जो पानी को रंग से पहचानता है।

धरा पर तूने किसका इख़्तियार रखा है ?
ये कौन है जो मिटटी से मिटटी को काटता है ?
मिटटी तो बनती है आखिर मिटटी से ही,
तो ये कौन है जो हर मिटटी का चरित्र जानता है ।

इंसान को तूने किसके हवाले लिखा है ?
ये कौन है जो इंसान को धर्म सिखलाता है ?
तूने तो जब सिर्फ इंसान ही बनाया था,
तो ये कौन है जो इनका मजहब बनाता है ।

ये खुदा बता तूने किसके नाम जगत लिखा है ?
ये कौन है जो तरह तरह की भाषा बोलता है ?
भाषा तो संपर्क का जरिया है अनेक शैलियों में,
तो ये कौन है जो शैली की उच-नीच तोलता है ।

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