खुदा की कला | कवी : अभिनयकुमार सिंह

आसमान का आँचल है,
धरती का सहारा है,
मिटटी की खुशबु है,
दरख़तों ने सवारा है ।

बादलों की मस्ती है,
बारिशों का ठिकाना है,
हवाओ की आहट है,
बागो ने बहारा है ।

दरिया की रवानी है,
लहरों का तराना है,
तलैया की सीमा है,
समंदर का किनारा है ।

ये खुदा की कला है,
क्या खूब इसे सजाया है,
निगाहे फिरे जिस ओर,
एक रंगीन ही नजारा है ।

 

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कवी : अभिनयकुमार सिंह

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