चंद्रमा की चंचल किरणें | कवयित्री – सुविधा अग्रवाल “सुवि”

चंद्रमा की चंचल किरणें,
मुझे हर सांझ रिझाती हैं;

मानो सूरज के ढ़लते ही,
ये खुद पे इतराती हैं;

अंतर्मन के एक कोने में,
मधुर मुस्कान सजाती है;

भटके हुए मनु हृदय का,
पथ प्रदर्श ये कराती है;

शून्यता की इस घड़ी में,
इक नई आस जगाती है;

अल्प है तो क्या कम है,
यही संदेश भिजवाती है;

चंद्रमा की चंचल किरणें,
अथाह चांदनी बिखराती है।

 


-सुवि

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