युवाओं द्वारा शिक्षा, संस्कृति एवं तकनीकी ज्ञान के समन्वित प्रयोग की महती आवश्यकता – प्रोफ़ेसर खाण्डल

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, काशी प्रान्त कोरोना महामारी के दौरान सेवा कार्य के साथ-साथ व्याख्यानों की श्रृंखला आयोजित कर रहा है। इसी कड़ी में अभाविप काशी प्रान्त के कौशांबी जनपद द्वारा रविवार को जिला प्रमुख आयुष कुमार साहू के आग्रह पर युवाओं में शिक्षा, संस्कृति, संस्कार एवं तकनीकी ज्ञान विषय पर विद्वत, सामाजिक चिंतक अध्यक्ष (आर & डी) इंडिया ग्लाइकोल्स लिमिटेड, फार्मर वाइस चांसलर एकेटीयू,लखनऊ के प्रोफेसर (डॉ) राकेश कुमार खाण्डल ने अपना मत रखा।

आधुनिकता की चकाचौंध में हमें अपनी संस्कृति, सभ्यता व संस्कारों को दरकिनार नहीं करना चाहिए। आज के समय में हम शिष्टाचार, नैतिकता को भूलते जा रहे हैं। शिष्टाचार व नैतिकता हमारे जीवन में बहुत अहम चीजें हैं। किसी भी विषय को ले लें, हम अपनी युवा पीढ़ी पर पूरा दोष डाल कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। सवाल यह नहीं कि आज की युवा पीढ़ी में नैतिकता व शिष्टाचार की कमी हो रही है। सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ युवा पीढ़ी पर दोषारोपण से हमारी जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है? क्या हम युवा पीढ़ी के लिए अपना कर्तव्य निष्ठा से निभा रहे हैं? क्या सारी गलती युवा पीढ़ी की ही है? मुझे नहीं लगता कि आज की युवा पीढ़ी सौ प्रतिशत गलत है। आज उनमें संस्कारों की कमी अगर हो रही है तो उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ हम ही हैं। क्योंकि हम उनमें संस्कार नैतिकता शिष्टाचार नहीं भर पा रहे हैं। यह एक सोचने का विषय है। बच्चों का अनैतिक होना हमारी कमजोरी है।

अगर मैं अपनी युवा उम्र की युवा पीढ़ी को उदाहरण के तौर पर लेकर आगे बढूं तो बचपन में दादा-दादियों द्वारा हमें अच्छी-अच्छी कहानिया सुनाई जाती थीं। कहते हैं कि जब बच्चा छोटा होता है तो उसका दिमाग बिलकुल शून्य होता है। आप उसको जिस प्रकार के संस्कार व शिक्षा देंगे उसी राह पर वह आगे बढ़ता है। अगर बाल्यकाल में बच्चों को यह शिक्षा दी जाती है कि चोरी करना बुरी बात है तो वह चोरी जैसी हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा। छोटी अवस्था में बच्चों को संस्कारित करने में माता-पिता, दादा-दादी व बुजुर्गो का बड़ा हाथ होता था। कहानियां भी प्रेरणादायी होती थीं।

जब हम छोटे होते थे तो हमारे पास एक नैतिक शिक्षा की पुस्तक होती थी। जिसमें बहुत अच्छी कहानिया होती थीं। आज वह पुस्तक बच्चों के पास से गायब हो चुकी है। ढेरों कॉमिक्स, कंप्यूटर गेम्स, वीडियो गेम्स, फिल्मी गानों की दुनिया भर की सीडी मिल जाएंगी, लेकिन भगत सिंह, स्वामी विवेकानंद, सन शेखर आजाद, महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई आदि के जीवन की कहानियों की किताब बच्चों के स्कूल बैग से गायब ही हो चुकी है। यहां तक कि हम कोशिश भी नहीं करते कि अपने बच्चों को ऐसी किताबे दें जिससे वह नैतिकता व शिष्टाचार को समझें।

यह बात जरूर है कि आजकल की युवा पीढ़ी नैतिकता तथा शिष्टाचार को भूल सी गई है। संस्कारों का अभाव कहीं भी देखने को मिल सकता है। युवा पीढ़ी में संस्कार, नैतिकता व शिष्टाचार की कमी न हो, इसके लिए हमें स्वयं से ही शुरुआत करनी होगी।

संस्कार, नैतिकता, शिष्टाचार, सभ्यता और जीवन दर्शन का सम्मान देश के नागरिकों का धर्म भी है। संस्कार यानी हमारी जड़ें हमारी पहचान, संस्कार शिष्टाचार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होते आए हैं।

हमारे स्कूलों में नैतिक शिक्षा व शिष्टाचार के लिए शिक्षा का प्रावधान होना अनिवार्य हो गया है। हमारे स्कूलों में शिक्षा का प्रभावशाली साधन बनाने के लिए परिवार समुदाय तथा राज्य आदि साधनों का उपयोग करना चाहिए जिससे बच्चों को संस्कारों से संबंधित शिक्षा दी जाए। छोटे बच्चों के सामने नैतिकता व शिष्टाचार ऐसा समृद्ध हो कि उन्हें अनैतिक तत्वों की तरफ जाने की गुजाइंश ही न दिखे।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सबसे बड़ा दोष यह है कि वह हमारे बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक नहीं है। शिष्टाचार एवं नैतिकता किसे कहा जाता है यह कभी सिखाया ही नहीं जाता। बल्कि गणित, विज्ञान, अंग्रेजी आदि विषयों पर जोर दिया जाता है, जिससे बच्चे पढ़ना तो सीख रहे हैं, लेकिन संस्कार, नैतिकता व शिष्टाचार किसे कहते हैं उससे अनभिज्ञ हैं। हमारे स्कूलों में बच्चों के व्यक्तित्व का विकास सामाजिक वातावरण में रखते हुए करना चाहिए।

अनैतिकता ही अशिष्टता का कारण है। अनैतिकता को समाप्त करने के लिए हमें बच्चों को उसी प्रकार से शिक्षित करने की जरूरत है। संस्कार होंगे तो बच्चों में नैतिकता व शिष्टाचार भी आएंगे। हम अगर बच्चों को पुस्तकीय ज्ञान के साथ इस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था करें जिसमें बच्चों में नैतिकता व शिष्टाचार को बढ़ावा मिले तो जल्द ही यह बातें सुनने को नहीं मिलेंगी कि आज की पीढ़ी में अनैतिकता व अशिष्टता है। जब हम उन्हें ज्ञान ही नहीं देंगे तो उनसे शिष्टाचार की आस कैसे लगाएं। उन्होंने युवाओं को जल संरक्षण, वृक्षारोपण, अतिथि देवो भव की परिकल्पना को साकार करने का मूल मंत्र भी समझाया। पूर्व कुलपति, उत्तर प्रदेश टेक्निकल यूनिवर्सिटी डॉ खाण्डल अपने वाइस चांसलर रहते हुए किए गए कार्यों को याद करते हुए थोड़ा भावुक हो गए। उन्होंने एक भारत श्रेष्ठ भारत का मूल मंत्र भी युवाओं को दिया। अन्न-जल का महत्व, सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में जागरण का महत्व एवं सनातन संस्कृति के बारे में भी विस्तारपूर्वक चर्चा की। कुलपति महोदय ने बचपन के दिनों में युवाओं को दिए जाने वाले संस्कारों का भी जिक्र करते हुए युवाओं को संस्कारी बनने का आह्वान किया।

इस लाइव सेशन में हजारों की संख्या में कौशांबी जनपद के छात्र छात्राओं समेत विभिन्न जनपद के विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं एवं अध्यापकों ने सहभागिता की। इस सेशन में सैकड़ों की संख्या में छात्रों प्रश्न पूछें और कुलपति ने उनका जवाब दिया। यह सेशन हजारों लोगों के द्वारा देखा जा चुका है तथा इस सेशन की रीच पंद्रह हजार रही है।

Share Now

Related posts

Leave a Comment